It’s was the last day of Karna’s life. In Mahabharata, it
was the moment when Karna was trying to take out the wheel of his chariot which
was immersed in earth; Arjuna threw his arrow (indrastra) to kill Karna who was
fighting on the opposite side of Pandavas. Karna was the chief of Kauravas army
when he got killed by the instruction of Lord Krishna.
Lord Krishna disguised himself as Brahman and went to Karna
who was lying on ground after being shot by Arjuna. Lord Krishna tested his
“danveerta” by asking him something. Karna replied he was waiting for death and
he had nothing to give him as he got defeated. Krishna (disguised as Brahman)
requested as he heard of Karna as a great giver and generous. Karna found
nothing to offer that brahman. Karna remembered he got two golden teeth. He
took a stone and broke his teeth and offered those to Krishna.
Krishna rejected those golden teeth as it was stained with
his blood. Karna somehow took his arrow and threw it ground and he created a
fountain, washed and offered those to Krishna. Thus being hurt and waiting for
death again Karna proved he was the great “danveer”.
Krishna took those teeth and came to His own form. Krishna
got so pleased and asked Karna to ask any boons. Karna refused as he never take
anything after giving. But as Krishna insisted Karna asked three boons from
Lord Krishna.
First, Suta jaati (cast) should be honoured in society as
Karna being known as Suta faced much insulation throughout his life. Second, he
requested Krishna to take birth in his rajya (area) in His next incarnation.
And third he requested Lord to burn his body in sinless place.
Lord Krishna found there was no place left where no sin had
happened. Lord Krishna granted his third boon too. Krishna performed his antim
sanskaar (last rite) in His own hand finding no sinless place in earth. The
only place was Lord Krishna’s hand, where no sin was committed.
Since it was Lord’s own hand, Karna attained Moksha and went to Vaikunth, where Lord Krishna resides.
COMPLETE AND TRUE STORY
ReplyDeleteअर्जून ने अंजलिका अस्त्र कर्ण की छाती में मार कर कर्ण को मरण अवस्था में पहुंचा दिया था और कर्ण थरप थरप कर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगा
अर्जून और पांडव कर्ण को इस हालात में देखकर बहुत खुश हो रहे थे और जोर जोर से हंसने लगते हैं लेकिन कृष्ण कर्ण को इस हालात में देखकर दुखी हो जाते हैं कृष्ण की आंखों में आसूं आ गए । कर्ण की हार से श्रीकृष्ण जी को बहुत दुख होता है। अर्जुन ने पूछा कि वो इतने दुखी क्यों है तो श्रीकृष्ण ने कहा कि आज मेरा परम भक्त और संसार का सबसे बड़ा दानवीर इस दुनिया को छोड़ कर जा रहा है कर्ण जैसा महान दानवीर ना ही तो कभी हुआ और न ही कभी होगा
तब अर्जुन ने कहा कि कर्ण इतना बड़ा दानवीर भी नहीं है और मैं कर्ण से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ योद्धा हूं । तो श्रीकृष्ण जी को अर्जुन की बातों में अहंकार नजर आता है उन्होंने उसका अहंकार तोड़ने के लिए अर्जुन को कहा कि कर्ण वो महावीर है और महादानी है जो इस हालात में भी दान दें सकता है । आओ मैं अभी तुम्हें उसके महादानी होने का प्रमाण देता हूं । तब वो दोनों साधु का रूप बना कर कर्ण के पास जाते हैं और उससे कुछ दान मांगते हैं तो कर्ण अपने दो सोने के दांत तोड़कर देता है लेकिन उन दांत पर खून लगे होने के कारण श्रीकृष्ण जी दान लेने से मना कर देते है तो कर्ण अपने तीर धनुष से वाण गंगा प्रकट करता है और दांतों को साफ करके दे देता है तो श्रीकृष्ण जी जो साधु के रूप में होते हैं तो कर्ण से पूछते हैं कि कर्ण आपके पास और कुछ है क्या तो कर्ण श्रीकृष्ण जी को अपने जीवन में किए सारे पुण्य दान में देता है तभी कर्ण पर दिव्य फूल गिरने लगा जाते हैं और सभी देवी, देवता , ऋषि, कर्ण की तारीफ करते हैं अर्जुन कर्ण की इस दानवीरता को देखकर अर्जुन स्वीकार कर लेते हैं कि कर्ण महादानी है
तो श्रीकृष्ण जी कर्ण से पूछते हैं " क्या तुम मुझे जानते हो " तो कर्ण श्रीकृष्ण जी के पैर छु कर कहता है कि आप वो हो जो इस दुनिया को मुसीबत से बचाते हो और आप वो हो जिसकी मै रोज़ पूजा करता हूं मैं जानता हूं कि आप भगवान श्रीकृष्ण है । तो श्रीकृष्ण जी अपने असली रूप में आ जाते हैं और उससे पूछते हैं तो तुमने इतनी मुझे दान देने के लिए इतनी मुसीबत क्यों उठाई तो कर्ण कहता है कि आप भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण हो आप जैसे महान पुरुष मेरे अंतिम समय में मुझसे दान मांगते हैं तो मैं कैसे मना कर सकता हूं । श्रीकृष्ण जी कर्ण से बहुत खुश हो जाते हैं और वो कर्ण को भी अपना विराट रूप दिखाते हैं और कर्ण को गले लगा लेते हैं कर्ण अपने अंतिम समय भगवान श्रीकृष्ण को देखकर बहुत खुश हो जाता है तो भगवान श्रीकृष्ण कर्ण को वरदान मांगने को कहते हैं तो कर्ण उनसे तीन वरदान मागता है
पहला वरदान : भगवान जब आप अपना अगला जन्म पृथ्वी पर ले तो आप पिछड़े वर्ग के लोगों का जीवन सुधारने का कार्य जरूर करें ।
दूसरा वरदान : माधव में चहाता हूं कि अगले जन्म में आप वही पर जन्म ले जहां मैं जन्म लूं ( according to this boon he will be in kalki army and he will help kalki to kill Kali prush ) ।
तीसरा वरदान : आप मेरा अंतिम संस्कार किसी पाप मुक्त स्थान पर किजिए ।
पर पृथ्वी पर कोई भी पाप मुक्त स्थान नहीं था इसलिए कृष्ण जी ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथों पर किया इस कारण कर्ण मृत्यु के बाद सीधा बैकुंठ धाम चला जाता है
1.This story is true it is written in jamini Mahabharata . Jamini was student of vedvyas. Jamini Mahabharata was written 3500 years ago .
2. This story is written in Kumar Mahabharata . Lord Vishnu ji narrate whole incident of Mahabharata to Kumar ji .
3. This story is also written in bhagwatam puran which was composed in 14 the century.
4. सूरत में अश्रविनि कुमार तापी नदी के पास एक मंदिर है वहां पर कर्ण का अंतिम संस्कार श्रीकृष्ण जी ने अपने हाथों पर किया था उस मंदिर के दीवारों पर कर्ण के अंतिम दान और श्रीकृष्ण जी के तीन वरदान की कहानी लिखी हैं । उस मंदिर में तीन पत्तों वाला बरगद का पेड़ है जो पांच हजार सालों पुराना है आज भी लोग उस मंदिर में जाकर कर्ण की पूजा करते हैं
5. दानवीर कर्ण के अंतिम दान की कहानी कर्ण प्रयाग में कर्ण और श्रीकृष्ण जी के मंदिर की दीवारों पर लिखी है।
दानवीर कर्ण के अंतिम दान की कहानी 100 Percent true है